गाथा यह अद्यात्म है...
सत्संग - पियूष - संत श्री विग्यांदेव जी की दिव्या आध्यात्मिक वाणी
आज की एस आध्यात्मिक सभा में हम सभी त्रयतापों के सम्बन्ध में विचार करेंगे और तप के विषय में विचार करेंगे I तीन ताप हैं और तीन तप भी हैं I विहंगम योग के प्रणेता अनंत श्री सदगुरु सदफल्देव जी महाराज ने अपने अध्यात्मिक सदग्रंथ स्वर्वेद में त्रयतापों का वर्णन किया I प्रत्येक मानव तापों से ग्रसित होता है I इसलिए शास्त्रों ने क्या कहा? कहा की तापों से जो निवृत्ति है वाही तो अत्यंत पुरुषार्थ है I ताप को ही दुःख भी कहा गया I त्रयतापों से निवृत्ति ही परम पुरुषार्थ है, अत्यंत पुरुषार्थ है I मानव का जीवन त्रिविध तापों को प्राप्त करता है I एक जो ताप है अधिदैविक है, एक आध्यात्मिक है और एक क्या है आधिभौतिक है I उसी तरह से तीन तप भी हैं I एक तप है शरीर का जिसे हम कहते हैं शारीरिक तप I एक तप वाणी का जिसे हम कहते हैं वाचिक तप, वांग्मय तप और एक जो तप है वह मानसिक तप है I श्रीमद्भागवद्गीता में इन तीन प्रकार के तापों का वर्णन प्राप्त होता है I (to be continued..)